Delhi में पहली बार कृत्रिम बारिश की तैयारी पूरी, 29 October को हो सकती है बारिश |
दिल्ली की प्रदूषण भरी हवा को साफ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने गुरुवार को घोषणा की कि राजधानी में क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के ज़रिए कृत्रिम बारिश कराने की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। इस परियोजना का पहला परीक्षण बुराड़ी क्षेत्र में सफलतापूर्वक किया गया है। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (X) पर पोस्ट करते हुए बताया कि विशेषज्ञों ने सफल ट्रायल पूरा कर लिया है और अगर मौसम अनुकूल रहा, तो दिल्ली में 29 अक्टूबर को पहली बार कृत्रिम बारिश हो सकती है। मौसम विभाग (IMD) ने 28, 29 और 30 अक्टूबर को बादलों की उपस्थिति की संभावना जताई है, जिससे इस प्रयोग के सफल होने की उम्मीद बढ़ गई है। “दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश कराने की पूरी तैयारी हो चुकी है। आज बुराड़ी क्षेत्र में इसका सफल परीक्षण किया गया है। अगर मौसम अनुकूल रहा तो दिल्ली 29 अक्टूबर को अपनी पहली कृत्रिम बारिश देखेगी,” मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा। उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पहल बताया और कहा कि सरकार का उद्देश्य इस नवाचार के ज़रिए दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाना और पर्यावरण का संतुलन बहाल करना है। वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चल रहा है क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट पिछले महीने दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के साथ क्लाउड सीडिंग के पांच ट्रायल करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे। यह प्रयोग उत्तर-पश्चिम दिल्ली के कुछ इलाकों में किए जाएंगे। इस परियोजना को डीजीसीए (DGCA) सहित 23 विभागों से मंजूरी मिल चुकी है। इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या कृत्रिम बारिश से सर्दियों में बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सकता है। परियोजना के लिए धनराशि आईआईटी कानपुर को स्थानांतरित की जा चुकी है, जो अपने Cessna 206-H (VT-IIT) विमान का उपयोग करेगी। यह ऑपरेशन 1 अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच किया जाएगा और इसमें सुरक्षा, वायु यातायात नियंत्रण और मौसम संबंधी सभी मानकों का पालन किया जाएगा। इस पहल में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी सहयोग कर रहे हैं। क्या है क्लाउड सीडिंग? क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड या नमक जैसे पदार्थों को बादलों में छोड़ा जाता है ताकि वर्षा को प्रेरित किया जा सके। ये कण बादलों में संघनन के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवाष्प बूंदों में परिवर्तित होकर बारिश के रूप में गिरता है। इस तकनीक का उपयोग अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में पहले से किया जा चुका है — कभी पानी की कमी दूर करने के लिए, तो कभी प्रदूषण कम करने के लिए। दिल्ली की हवा अब भी ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बढ़ती हवाओं के कारण थोड़ी राहत मिलने के बावजूद गुरुवार को दिल्ली की वायु गुणवत्ता (AQI) लगातार चौथे दिन “बहुत खराब” श्रेणी में दर्ज की गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, शाम 4 बजे तक शहर का 24 घंटे का औसत AQI 305 रहा। आनंद विहार में प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक 410 दर्ज किया गया। कुल 38 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से 23 “बहुत खराब” और 14 “खराब” श्रेणी में रहे। ईडब्ल्यूएस (Air Quality Early Warning System) के पूर्वानुमान के मुताबिक, शनिवार तक दिल्ली की हवा “बहुत खराब” श्रेणी में बनी रह सकती है, और इसके बाद “खराब” से “बहुत खराब” के बीच उतार-चढ़ाव रहेगा। गुरुवार को दिल्ली देश का पाँचवाँ सबसे प्रदूषित शहर रहा, जबकि बहादुरगढ़ (हरियाणा) 325 के AQI के साथ पहले स्थान पर था। वैज्ञानिकों और सरकार की इस संयुक्त पहल से उम्मीद की जा रही है कि कृत्रिम बारिश दिल्ली के प्रदूषण से कुछ राहत दिला सकेगी — और शायद पहली बार, विज्ञान सचमुच राजधानी की धुंध भरी हवा में थोड़ी ताज़गी लेकर आएगा।
HINDI NEWS
Shekh Md Hamid
10/24/20251 min read
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